ये हम आ गये है कहां?





ये सन्नाटें, ये डर, ये खामोशीयां..
ये धूप, ये दर्द़, ये मजबुरीयां..

अपनेही धुंध मे चलते चलते
ये हम आगये हैं कहां?

आॅंसू भी भयभीत हो
और घबरा उठे जहां
कल की हंसी
आज परेशान हैं
क्युं जिंदगी हो गयी है खफ़ा..

सांस लेना न था
इतना मुश्कील कभी
इतना अकेला न था
इन्सान भी कभी
जीना तो छोडो
मौत भी यहां, हो गयी है तनहा..

ये हम आगये हैं कहां?




संजीवनी

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